मेरे अरमान.. मेरे सपने..


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बुधवार, 11 जनवरी 2012

अनमोल -पल ....पिकनिक



उम्र का बदलाव तो दस्तूर -ऐ -जहाँ हैं !
अगर महसूस न करो तो, बुढ़ापा  कहाँ हैं !!

(*सदा प्रफुल्लित मैं और पतिदेव*) 


**जेष्ठ --नागरिकों के साथ एक दिन---पिकनिक **

ज्येष्ठ --नागरिक  कल्याणकारी -संध ..वसई 


(गणमान्य लोग --बस में सवार )


आज मुझे 'जेष्ठ -नागरिकों के साथ एक पिकनिक में जाने का सु-अवसर प्राप्त हुआ --पतिदेव उस समिति के गणमान्य  सदस्य हें --पिछले साल की पिकनिक मुझसे 'मिस' हो गई थी ,पर इस बार-- 'मैं जरुर जाउंगी' ऐसा फरमान मैने जारी कर दिया ---अब बेचारे पतिदेव की कहा बिसात जो टाल दे --थोड़ी ना -नुकुर के बाद आखिर 'यस ' हो ही गया ---


सुबह सात बजे निकला बसों से हमारा काफिला --सब में काफी जोश भरा हुआ था --कुछ तो ८५ के भी थे --लगता ही नहीं था की बुजुर्ग हैं --सब टिप -टाप! कुछ अकेले थे --कुछ पत्नियों के साथ थे !


(खुशगवार मौसम ---अभी सूरज की लालिमा फैल  रही हें )



( वो देखो ....भास्कर का उदय हो  रहा हें ) 


पहले गणेश वंदना की गई --फिर किसी ने भजन गाया ---तब तक बिस्कुट का  वितरण शुरू हो गया --एक जनाब ने गीत शुरू किया --" माना जनाब ने पुकारा नहीं --क्या मेरा प्यार भी गवारा नहीं ,मुफ्त  में बन के चल दिए तन के वल्लाह जबाब तुम्हारा नहीं "वाह !वाह !! का शोर शुरू हो गया --वैसे वो खुद भी देव साहेब के जरा ज्यादा ही प्रशंसक थे--क्योकि उनके कपडे ,केप और गले का मफलर यही कहानी कह रहा था --"ख़्वाब हो तुम या कोई हकीकत कौन हो तुम बतलाओ ...."    सब मस्ती में ताली बजने लगे --"दुखी मन मेरे  सुन मेरा कहना ,जहाँ नहीं चैना ....?????" इतना गाते ही सब चिल्लाने लगे दर्दीले  गीत नहीं --ख़ुशी भरे गीत गाओ ---" मैं  हूँ झूम --झूम --झूम --झूम झुमरू फक्कड बन के घुमु ......"


(देवसाहेब की अदा  )


रास्ते में एक मंदिर विश्वकर्मा आया सब उतर गए दर्शन करने चल दिए -----


(मंदिर के बाहर धुप सेकते विशिष्ठ जन )




( मंदिर के बाहर स्वागत करती कठपुतली  )




( गणेशजी की प्रतिमा )




( मंदिर में जगन्नाथ ,सुभद्रा ,बलराम की मूर्तियां ) 




(मंदिर में बुजुर्गो की प्रतिमाए  )






(दिलकश सुबह का मंज़र ) 



(जंगल में मंगल  )  



खुबसुरत रास्तो से गुजरते हुए आखिर हम रिसोर्ट पहुँच ही गए --बहुत अच्छा समां था--चारो और ठंडी -ठंडी पुरवैया बह रही थी --दिल मगन हो रहा था  ---हमारा स्वागत किया इस मेंडक जी ने ....




(देखिए हमें देख कितना खुश हो रहे  हैं ---मिस्टर मेंडक जी --फुले नहीं समां रहे हैं ---)

सबसे पहले रिसोर्ट पहुँच कर हमको नाश्ता दिया गया --गरमा -गरमा पोहें ,उपमा और वडे  ..छककर  नाश्ता किया फिर गर्म चाय पीकर चल पड़े ऊपर की तरफ जहां पानी की बड़ी -बड़ी स्लाइड लगी थी -पर शायद हममे से कोई वहां  जाने का साहस नहीं कर पाएगा --हाँ , रेन डांस और स्विंगपूल का सबने मज़ा लिया ----चलिए चलते हैं --- 






  (नाश्ता -हाल )


(मिस्टर एक दोस्त के साथ )




(रिसोर्ट का रास्ता )


(मिस्टर अपने दोस्तों के साथ )


(हम भी चले --ऊपर की तरफ .. जहां पानी के बड़े -बड़े स्लाइड लगे हैं )




(यह खुबसुरत काटेज हैं  ..जो किराए से मिलती हैं ) 




(और यह मैं हूँ  )


( ठंडे पानी से चींख निकल गई  )


(रेन -डांस का मजा ही कुछ और हैं )




(मजा ही मजा )










( "ओ--ओ -- सजना ..बरखा बहार आई ---रस की फुहार लाई --अखियों में प्यार लाई ---ओ ओ ओ सजना" )


(चलिए ,बहुत रैन -डांस हुआ ...थोडा धुप सेक ले ... बड़ी ठंडी हैं ..)




(नहाकर खाने का इन्तजार )


 खाना बहुत टेस्टी था ---छोले,पूरी आलू और मटर पनीर साथ में दाल- चावल और श्रीखंड ---वाह !  लंच के बाद  कुछ बुजुर्ग लोग आराम करने लगे ..वही बिछी हुई खटियो पर --कुछ गुट बना कर बतियाने लगे --और मै जमकर  झुला झूलने लगी --


( झुला झूलते हुए --सुहाने मौसम का मज़ा )


(खाने के बाद ....मनोरंजन के कुछ पल ..)



( कविता कहते हुए पाटिल साहेब --संचालक )




लंच के बाद रंजना जी ने  गीत गया ----

"हें ,नीले गगन के तले --धरती का प्यार पले --
ऐसे ही जग में आती हैं सुबह ही ऐसे ही शाम ढले .."

 गीत के बोल ऐसे थे --सच में हम नीले गगन के तले बैठे हुए थे --बहुत अच्छा लगा ...कई लोगो ने कविता -पाठ  किया ---फिर सबने गरबा भी खेला --चुटकुलों का दौर भी चला --हंस -हंस कर पेट दुखने लगा ..
५ बजे चाय आ गई ..और हम चल  पड़े वापस --एक अनमोल यादगार के साथ अपने -अपने घर ........जयहिंद !


24 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

बहुत बहुत बधाई |
बढ़िया प्रस्तुति ||

Pallavi saxena ने कहा…

बहुत ही अच्छी चित्रमय प्रस्तुति ....

रेखा ने कहा…

बहुत ही अच्छा लगा ,सारे चित्र मनमोहक थे ....
आपलोगों ने जम कर मजे किये हैं लगता है ...खूबसूरत प्रस्तुति

अन्तर सोहिल ने कहा…

जो हर उम्र में जिन्दगी का मजा लेना जानता है, वो कभी बूढा नहीं हो सकता है।

"बेचारे पतिदेव की कहा बिसात जो टाल दे"
हम भी यही कहते हैं, लेकिन कुछ खुद को नारीवादी कहाने वाले औरतों को बेचारा बनाने पर अडे रहते हैं :)

सुन्दर-सुन्दर तस्वीरों के लिये धन्यवाद
प्रणाम स्वीकार करें

डॉ टी एस दराल ने कहा…

जिंदगी का मज़ा तो यूँ ही जीने में है ।
बढ़िया रही यह वरिष्ठ नागरिक पिकनिक भी ।

संध्या शर्मा ने कहा…

"ऐसे ही जीवन में आती रहें सुबहें ऐसे ही शाम ढले..."
बहुत अच्छी अच्छी तस्वीरें... बहुत सुन्दर यादगार पल समेटे हैं आपने... बधाई..

रश्मि प्रभा... ने कहा…

mast picnic

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

सभी जेष्ठ जवानो को सादर नमन, रेन डांस गजब का रहा। :)

विभूति" ने कहा…

अच्छी चित्रण प्रस्तुती....बधाई.

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

good voyage!

Unknown ने कहा…

सुन्दर पलों से सजी पिकनिक.जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है अआप दोनों की जिन्दादिली को नमन

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

चित्रो से सजी हुई बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आभार!

नीरज गोस्वामी ने कहा…

गज़ब के चित्र...लाजवाब प्रस्तुती...वाह...

नीरज .

संजय भास्‍कर ने कहा…

इतने सारे खूबसूरत एहसास एक साथ
.....सुन्दर तस्वीरों के लिये धन्यवाद

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

बहुत -बहुत धन्यवाद दोस्तो

आकाश सिंह ने कहा…

पिकनिक के हसीं पलों को सुन्दर तरीके से आपने पेश किया है | मेरी जिज्ञासा है की आप हमेसा तस्वीरों की तरह खुश रहें | धन्यवाद |

Maheshwari kaneri ने कहा…

सुन्दर अहसास..

Rakesh Kumar ने कहा…

उम्र का बदलाव तो दस्तूर -ऐ -जहाँ हैं !
अगर महसूस न करो तो, बुढ़ापा कहाँ हैं !!

सच में !
झूलते हुए तो आप दस बारह साल की बच्ची सी लग रही हैं,दर्शी जी.

कहाँ मनाई यह पिकनिक आपने?

दिलकश नजारों को चित्रों में खूब कैद किया है आपने.

सुन्दर प्रस्तुति के लिए दिल से आभार जी.

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

धन्यवाद राकेश जी ...."अगर महसूस न करो तो बुढ्पा कहा हेई" ...हम कितने भी बड़े हो जाए पर खुद को हमेशा जवान ही समझते हेई ...

vidya ने कहा…

मौज मस्ती..........
अच्छा लगा देख कर..
सादर.

Unknown ने कहा…

bahut sundar prastuti |
Mere bhi blog me padharen |
मेरी कविता

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

ऐसा लगा जैसे कोई डाक्यूमेंटरी फिल्म देख रहे हैं।
हंसते हंसाते बुजुर्गों को प्रणाम।

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

ऐसा लगा जैसे कोई डाक्यूमेंटरी फिल्म देख रहे हैं।
हंसते हंसाते बुजुर्गों को प्रणाम।

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

ऐसा लगा जैसे कोई डाक्यूमेंटरी फिल्म देख रहे हैं।
हंसते हंसाते बुजुर्गों को प्रणाम।